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घटा / इसाक अश्क
Kavita Kosh से
					
										
					
					दो शब्द चित्र
(एक)
बारिशों के पल 
नया 
जादू जगाते हैं। 
   
तितलियाँ 
लेकर उड़ीं- 
संयम हवाओं में, 
   
खिंच गए 
सौ-सौ धनुष- 
दृष्टि, दिशाओं में, 
   
जुगनुओं से 
याद के 
खण्डहर सजाते हैं। 
   
गंध बनकर 
डोलती- 
काया गुलाबों की,
पंक्तियाँ 
जीवित हुई- 
जैसे किताबों की, 
   
गाछ-भी 
यह देखकर 
ताली बजाते हैं। 
   
(दो) 
रंग 
खुशबू-घटा 
क्या नहीं आजकल। 
रैलियाँ 
जुगनुओं की- 
निकलने लगीं, 
हर दिशा 
वस्त्र अपने-
बदलने लगीं, 
   
सूर 
उलझी जटा
क्या नहीं आजकल। 
   
द्वार तक हिम-हवा- 
थरथराते हुए, 
आ-गयी 
गीत-गोविन्द- 
गाते हुए, 
   
छंद 
धनुयी छटा
क्या नहीं आजकल।
	
	