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"खिड़कियाँ खोल दी हैं / कुँअर रवीन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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21:31, 13 दिसम्बर 2009 का अवतरण
मैंने खिड़कियाँ खोल दी हैं
खोल दिए सारे
रोशनदानों के पट
सारा घर रोशनी से भर गया
सुवासित हो गया तुम्हारी सुगंध से
दरवाज़े खोल देता हूँ
खिड़कियों से जो दिख रहे हैं
जंगल ,पहाड़, नदियों के दृश्य
शायद आ जाएँ भीतर
मै दरवाज़ों-खिड़कियों पर
पर्दे नहीं लटकाता