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"बीती विभावरी जाग री / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

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अम्बर पनघट में डुबो रही<br>
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तारा घट ऊषा नागरी।<br><br>
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लो यह लतिका भी भर ला‌ई
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मधु मुकुल नवल रस गागरी।
  
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मधु मुकुल नवल रस गागरी।<br><br>
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तू अब तक सो‌ई है आली<br>
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आँखों में भरे विहाग री।<br><br>
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21:46, 24 दिसम्बर 2009 का अवतरण

इस रचना को आप सस्वर सुन सकते हैं:  
आवाज़: अज्ञात

बीती विभावरी जाग री!
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा घट ऊषा नागरी।

खग कुल-कुल सा बोल रहा
किसलय का अंचल डोल रहा
लो यह लतिका भी भर ला‌ई
मधु मुकुल नवल रस गागरी।

अधरों में राग अमंद पिये
अलकों में मलयज बंद किये
तू अब तक सो‌ई है आली
आँखों में भरे विहाग री।