भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अंत / मृत्यु-बोध / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (अंत (मृत्यु-बोध) / महेन्द्र भटनागर का नाम बदलकर अंत / मृत्यु-बोध / महेन्द्र भटनागर कर दिया गया है)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=मृत्यु-बोध / महेन्द्र भटनागर
 
|संग्रह=मृत्यु-बोध / महेन्द्र भटनागर
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 
समर —
 
समर —
 
+
अब कहाँ है?
अब कहाँ है ?
+
 
+
 
सफ़र —
 
सफ़र —
 
+
अब कहाँ है?
अब कहाँ है ?
+
 
+
 
+
  
 
थम गया सब
 
थम गया सब
 
 
बहता उछलता नदी-जल तरल,
 
बहता उछलता नदी-जल तरल,
 
 
जम गया सब —
 
जम गया सब —
 
+
नसों में रुधिर की तरह!
नसों में रुधिर की तरह !
+
 
+
  
 
दर्द से
 
दर्द से
 
 
देह की हड्डियाँ सब
 
देह की हड्डियाँ सब
 
 
चटखती लगातार,
 
चटखती लगातार,
 
 
अब कौन
 
अब कौन
 
 
इन्हें दबाए
 
इन्हें दबाए
 
+
टूटती आख़िरी साँस तक?
टूटती आख़िरी साँस तक ?
+
 
+
 
अँधेरे-अँधेरे घिरे
 
अँधेरे-अँधेरे घिरे
 
 
जब न कोई
 
जब न कोई
 
+
पास तक!
पास तक !
+
 
+
 
+
  
 
लहर अब कहाँ
 
लहर अब कहाँ
 
 
एक ठहराव है,
 
एक ठहराव है,
 
 
ज़िन्दगी अब —
 
ज़िन्दगी अब —
 
 
शिथिल तार;
 
शिथिल तार;
 
+
बिखराव है!
बिखराव है !
+
</poem>

15:05, 1 जनवरी 2010 का अवतरण

समर —
अब कहाँ है?
सफ़र —
अब कहाँ है?

थम गया सब
बहता उछलता नदी-जल तरल,
जम गया सब —
नसों में रुधिर की तरह!

दर्द से
देह की हड्डियाँ सब
चटखती लगातार,
अब कौन
इन्हें दबाए
टूटती आख़िरी साँस तक?
अँधेरे-अँधेरे घिरे
जब न कोई
पास तक!

लहर अब कहाँ
एक ठहराव है,
ज़िन्दगी अब —
शिथिल तार;
बिखराव है!