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|रचनाकार=घनानंद
}}
[[Category:कवित्त]]{{KKCatKavitt}} :::'''कवित्त'''<br><brpoem>जासों प्रीति ताहि निठुराई सों निपट नेह,<br>कैसे करि जिय की जरनि सो जताइये।<br>महा निरदई दई कैसें कै जिवाऊँ जीव,<br>बेदन की बढ़वारि कहाँ लौं दुराइयै।<br>दुख को बखान करिबै कौं रसना कै होति, <br>ऐपै कहूँ बाको मुख देखन न पाइयै।<br>रैन दिन चैन को न लेस कहूँ पैये भाग,<br>आपने ही ऐसे दोष काहि धौं लगाइयै।। 5 ।।लगाइयै।<br/poem>