भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जासों प्रीति ताहि निठुराई / घनानंद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जासों प्रीति ताहि निठुराई सों निपट नेह,
कैसे करि जिय की जरनि सो जताइये।
महा निरदई दई कैसें कै जिवाऊँ जीव,
बेदन की बढ़वारि कहाँ लौं दुराइयै।
दुख को बखान करिबै कौं रसना कै होति,
ऐपै कहूँ बाको मुख देखन न पाइयै।
रैन दिन चैन को न लेस कहूँ पैये भाग,
आपने ही ऐसे दोष काहि धौं लगाइयै।