भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"छपनिया काल रे छपनिया काल / राजस्थानी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda monga (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: ''मुझे इस गीत की कुछ ही पंक्तियाँ स्मरण हैं जो इस प्रकार हैं ;'' ओ म्…) |
Sharda monga (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
बाजरे री रोटी गंवार की फल्डी | बाजरे री रोटी गंवार की फल्डी | ||
− | मिल जाये तो | + | मिल जाये तो वह ही भली |
− | म्हारो | + | म्हारो छप्पन्हियो काल्ड |
फेरो अज भोल्डी दुनियाँ में. | फेरो अज भोल्डी दुनियाँ में. |
14:22, 20 जनवरी 2010 का अवतरण
मुझे इस गीत की कुछ ही पंक्तियाँ स्मरण हैं जो इस प्रकार हैं ;
ओ म्हारो छप्पन्हियो काल्ड फेरो मत अज भोल्डी दुनियाँ में.
बाजरे री रोटी गंवार की फल्डी मिल जाये तो वह ही भली
म्हारो छप्पन्हियो काल्ड फेरो अज भोल्डी दुनियाँ में.