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परछाईयों के जाल अप्र
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थके कदमों की वापसी
 
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रोज़ की बात है
 
रोज़ की बात है

09:22, 18 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण

परछाईयों के जाल पर
थके कदमों की वापसी
रोज़ की बात है

कभी-कभी लगता है
अब कुछ नया नहीं

फिर भी
तारकोल बिछी सड़कों से हटकर
गाँव के कच्चे रास्तों पर
धड़कते हैं
भागते एक बच्चे के
दो किशोर पाँव !