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फिर
 
 
 
फिर कोई निराशा
 
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पनप रही है मेरे भीतर
 
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फिर कोई धुआं
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फिर कोई धूल
 
फिर कोई धूल
मेरी आंखें दुखा रही है
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फिर कोई हताशा
 
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चमको-चमको
 
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खूब तेज चमको
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मेरी प्रेरणा के सितारो
 
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मुझको इस निराशा से उबारो
 
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1989
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रचनाकाल : 1989
 
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11:43, 6 जून 2010 के समय का अवतरण

फिर कोई निराशा
पनप रही है मेरे भीतर
फिर कोई धुआँ
भर रहा है मेरे सीने में

फिर कोई धूल
मेरी आँखें दुखा रही है

फिर कोई हताशा
मुझको रुला रही है

चमको-चमको
खूब तेज़ चमको
मेरी प्रेरणा के सितारो
मुझको इस निराशा से उबारो

रचनाकाल : 1989