"मुझसे कह देना / संजय आचार्य वरुण" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem>मुझसे कह देना जब उजास की बात करो तो मुझ से कह देना जब धरती पर गंग…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | < | + | {{KKGlobal}} |
− | + | {{KKRachna | |
+ | |रचनाकार=संजय आचार्य वरुण | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <Poem> | ||
जब उजास की बात करो तो | जब उजास की बात करो तो | ||
मुझ से कह देना | मुझ से कह देना | ||
− | जब धरती पर गंगाजल सी | + | जब धरती पर गंगाजल-सी |
− | किरणें | + | किरणें उतरें आकर |
सारा कल्मष धुल जाता है | सारा कल्मष धुल जाता है | ||
ताप सूर्य का पाकर | ताप सूर्य का पाकर | ||
पंक्ति 17: | पंक्ति 22: | ||
पल-पल तम को हरना | पल-पल तम को हरना | ||
− | अंधियारे से | + | अंधियारे से लड़ना हो तो |
मुझसे कह देना | मुझसे कह देना | ||
पंक्ति 26: | पंक्ति 31: | ||
जब काया का चित्र उकेरो | जब काया का चित्र उकेरो | ||
− | + | मुझसे कह देना | |
जिसने अपने भीतर-भीतर | जिसने अपने भीतर-भीतर | ||
− | + | ख़ुद को ही ललकारा | |
− | + | ख़ुद को किया पराजित जिसने | |
उससे ये जग हारा | उससे ये जग हारा | ||
पंक्ति 36: | पंक्ति 41: | ||
मुझसे कह देना | मुझसे कह देना | ||
− | जीवन की | + | जीवन की बारहखड़ी बाँची |
− | शब्द नहीं | + | शब्द नहीं घड़ पाया |
जितना-जितना भरा स्वयं को | जितना-जितना भरा स्वयं को | ||
उतना खाली पाया | उतना खाली पाया | ||
− | अर्थ उम्र का मिल | + | अर्थ उम्र का मिल जाए तो |
मुझसे कह देना | मुझसे कह देना | ||
− | एक किनारे सत्य | + | एक किनारे सत्य खड़ा है |
एक किनारे मेला | एक किनारे मेला | ||
− | बीच में है | + | बीच में है यह दुनिया |
आता जाता रेला | आता जाता रेला | ||
चलना हो उस पार अगर तो | चलना हो उस पार अगर तो | ||
− | मुझसे कह | + | मुझसे कह देना । |
</poem> | </poem> |
21:58, 21 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
जब उजास की बात करो तो
मुझ से कह देना
जब धरती पर गंगाजल-सी
किरणें उतरें आकर
सारा कल्मष धुल जाता है
ताप सूर्य का पाकर
कुदरत की जब कहो कहानी
मुझसे कह देना
घर की देहरी पर छोटा सा
दीप हमेशा धरना
उसका काम यही होगा बस
पल-पल तम को हरना
अंधियारे से लड़ना हो तो
मुझसे कह देना
एक पलक में चाँद छुपा है
एक पलक मे सूरज
कई समन्दर सबके भीतर
इसमें कैसा अचरज
जब काया का चित्र उकेरो
मुझसे कह देना
जिसने अपने भीतर-भीतर
ख़ुद को ही ललकारा
ख़ुद को किया पराजित जिसने
उससे ये जग हारा
भरनी हो हुंकार अगर तो
मुझसे कह देना
जीवन की बारहखड़ी बाँची
शब्द नहीं घड़ पाया
जितना-जितना भरा स्वयं को
उतना खाली पाया
अर्थ उम्र का मिल जाए तो
मुझसे कह देना
एक किनारे सत्य खड़ा है
एक किनारे मेला
बीच में है यह दुनिया
आता जाता रेला
चलना हो उस पार अगर तो
मुझसे कह देना ।