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आकांक्षा / त्रिलोचन

सुरीली सारंगी अतुल रस-धारा उगल के

कहीं खोई जो थी, बढ़ कर उठाया लहर में,

बजाते ही पाया, बज कर यही तार सब को

बहा ले जाएँगे, भनक पड़ जाए तनिक तो.