Last modified on 6 अक्टूबर 2011, at 20:38

मुश्किलों से लड़ इन्हें आसां बनाना चाहता हूँ / शेष धर तिवारी

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:38, 6 अक्टूबर 2011 का अवतरण ()

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुश्किलों से लड़ इन्हें आसां बनाना चाहता हूँ
कर्म कर के ही मैं अपना लक्ष्य पाना चाहता हूँ
 
ज़िंदगी दे ज़ख्म पर यूँ जख्म, मैं फिर भी हँसूंगा
आजमाइश की हदें मैं आजमाना चाहता हूँ
 
क्यूँ करूँ मैं फिक्र कोई आइना क्या बोलता है
फैसला अपना मैं दुनियाँ को सुनाना चाहता हूँ
 
देख ली दुनिया बहुत अब देख ले दुनिया मुझे भी
मौत को भी ज़िंदगी के गुर सिखाना चाहता हूँ
 
क्या हुआ गर साथ मेरे हमसफ़र कोई नहीं है
मैं अकेले कारवाँ बनकर दिखाना चाहता हूँ
 
मैं जिऊंगा ज़िंदगी खुद्दार रहकर ज़िंदगी भर
जह्र पीकर भी मैं शिव सा मुस्कराना चाहता हूँ
 
हर हंसी अशआर ने जिसके, मुझे पहचान दी है
उस ग़ज़ल को ज़िंदगी भर गुनगुनाना चाहता हूँ