Last modified on 31 मई 2014, at 16:15

श्री बद्रीनाथजी की आरती-1 / आरती


(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अष्टक   ♦   आरतियाँ   ♦   चालीसा   ♦   भजन   ♦   प्रार्थनाएँ   ♦   श्लोक

   
जय जय श्री बद्रीनाथ,
जयति योग ध्यानी।| टेक।|

निर्गुण सगुण स्वरूप, मेधवर्ण अति अनूप।
सेवत चरण स्वरूप, ज्ञानी विज्ञानी। जय...

झलकत है शीश छत्र, छवि अनूप अति विचित्र।
बरनत पावन चरित्र, स्कुचत बरबानी। जय...

तिलक भाल अति विशाल,
गल में मणि मुक्त-माल।

प्रनत पल अति दयाल,
सेवक सुखदानी। जय...

कानन कुण्डल ललाम,
मूरति सुखमा की धाम।

सुमिरत हों सिद्धि काम,
कहत गुण बखानी। जय...

गावत गुण शंभु शेष,
इन्द्र चन्द्र अरु दिनेश।

विनवत श्यामा हमेश,
जोरी जुगल पानी। जय...