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महानगर का गीत / चंद ताज़ा गुलाब तेरे नाम / शेरजंग गर्ग

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मोह सभी धुँधुआते सागर में डूब गए
दर्द उगे नए नए
हँस-हँस कर रोते हैं, रो-रोकर हँसते हैं!

आभासित इधर-उधर भरमाता जाल-सा
एक किरण खोज रही जीने की लालसा
श्यामलता झलक गई हर उजले रंग में
भीग कर उमंग में
केवल औपचारिकता बाँहों में कसते हैं,
हँस-हँस कर रोते हैं, रो-रोकर हँसते हैं।

प्यार एक ग़लती था गाँव की भुला देंगे
जागेगा अगर गला घोंटकर सुला देंगे
बात तनिक खास नहीं, अपनों से शंकित हैं
खुद से आतंकित हैं
मित्र बहुत दूर, बहुत दूर कहीं बसते हैं,
हँस-हँस कर रोते हैं, रो-रोकर हँसते हैं।