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इन्साँ की शक़्ल में जो मौजूद हैं क़साई / डी. एम. मिश्र

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इन्साँ की शक़्ल में जो मौजूद हैं क़साई
इंसानियत की, ज़्यादा देते हैं वो दुहाई

साधू का वेश धर कर निकले जो ठगी करने
त्यागी बने हुए हैं पर काटते मलाई

कितने गुमान में थे उड़ते हुए कबूतर
जब जाल में फँसे तब चूहों की याद आई

कहना हमें है जो भी कह देंगे मुँह पे बेशक
पर पीठ के न पीछे करते कभी बुराई

इन्सानियत है पहले ओ जाति-धर्म वालो
हरगिज़ नहीं है अच्छी आपस की यह लड़ाई

मुझ पर गुज़र रही जो वो दिल ही जानता है
काँटो से डर नहीं है फूलों से चोट खाई