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नींद / राजेश जोशी
Kavita Kosh से
हवा के हजार घोड़े
हजार घोड़ों पर आई रात
बहुत सारा माल असबाब
करोड़ों लोगों का नींद
बच्चों बड़ों-बूढ़ों
और जवान प्रेमी-प्रेमिकाओं के सपने
- लादे हुए
- लादे हुए
जरा सी
अनजाने ही हो जाए
भूल-चूक
कैसा बवेला मचे
लोगों की नींद में !
एक नन्ही सी अकेली जान
बिचारी पर
कितनी ढेर जिम्मेदारियाँ