भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नामविश्वास / तुलसीदास/ पृष्ठ 11

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:20, 8 मई 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कलि वर्णन-2

 
(85)

बेद -पुरान बिहाइ सुपंथु , कुमारग , कोटि कुचालि चली है।।
कालु करालु, नृपाल कृपाल न , राज समाजु बड़ोई छली है।।

बर्न -बिभाग न आश्रमधर्म , दूनी दुख-दोष-दरिद्र-दली हैै।।
स्वारथ को परमारथको कलि रामको नामप्रतापु बली है।।

 (86)

न मिटै भवसंकटु, दुर्घट है तप, तीरथ जन्म अनेक अटो।।
कलिमें न बिरागु, न ग्यानु कहूँ, सबु लागत फोकट झूठ-जटो।।

नटु ज्यों जनि पेट -कुपेटक कोटिक चेटक -कौतुक-ठाठ ठटो।।
तुलसी जो सदा सुखु चाहिअ तौ, रसनाँ निसि -बासर रामु रटो।।