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शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 1
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आज सुख सोवत सलौनी सजी सेज पैं गुंजरन लागीं भौंर-भीरैं केलि-कुंजन मैं मेल्यौ उर आँनद अपार मैन सोवत हीं सुर ही के भार सूधे-सबद सु कीरन के हौरैं-हौंरैं डोलतीं सुगंध-सनीं डारन तैं संभ्रम अति उर मैं बढ़्यौ सौंधे समीरन कौ सरदार सुनत सलौनी बात यह लटपटी पाग सिर साजत उनींदे अंग सीतल-समीर मंद हरत मरंद-बुंद