Last modified on 7 जुलाई 2011, at 02:58

उसने करवा दी मुनादी शहर में इस बात की -- / गुलाब खंडेलवाल

Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:58, 7 जुलाई 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


उसने करवा दी मुनादी शहर में इस बात की --
'कोई अब हमसे करे चर्चा न पिछली रात की'

हमने यह समझा कि प्याला है हमारे वास्ते
उसने कुछ ऐसी अदा से मुस्कुराकर बात की

है घड़ी भर दिन अभी खिलते हैं क्या गुल, देखिये
यों तो हरदम लग रही है शह हमारे मात की

राख पर अब उनकी लहरायें समन्दर भी तो क्या
सो गए जो उम्र भर हसरत लिये बरसात की!

आज भाती हो न उसको तेरी पंखड़ियाँ, गुलाब!
कल मचेगी धूम दुनिया भर में इस सौग़ात की