भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धन्य बबा गाँधी... / कोदूराम दलित

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:42, 19 सितम्बर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चरखा-तकली चला-चला के, खद्दर पहिने ओढ़े,
धन्य बबा गाँधी, सुराज ला लेये तब्भे छोड़े ।

सबो धरम अऊ सबो जात ला, एक कड़ी मा जोड़े,
अंगरेजी कानून मनन-ला पापड़ साहीं तोड़े ।
चरखा-तकली चला-चला के, खद्दर पहिने ओढ़े,
धन्य बबा गाँधी, सुराज ला लेये तब्भे छोड़े ।।

रहिस जउन हर तोर गिराए खातिर खाँचा कोड़े,
करके प्यार-दुलार उहू-ला अपने कोती मोड़े ।
चरखा-तकली चला-चला के, खद्दर पहिने ओढ़े,
धन्य बबा गाँधी, सुराज ला लेये तब्भे छोड़े ।।

गए बिलायत जिहाँ कुटिल मन बइठे रहे धपोड़े,
भरे सभा में उनकर भंडा नरियर साहीं फोड़े ।
चरखा-तकली चला-चला के, खद्दर पहिने ओढ़े,
धन्य बबा गाँधी, सुराज ला लेये तब्भे छोड़े ।।

कर-कर के सत्याग्रह गोरा-शासन ला झकझोरे,
तोर प्रताप देख के चर्चिल रहिगे दाँत निपोरे ।
चरखा-तकली चला-चला के, खद्दर पहिने ओढ़े,
धन्य बबा गाँधी, सुराज ला लेये तब्भे छोड़े ।।

सन् बयालीस-मा निठुर मनन ला, लिमउ असन निचोड़े
अंगरेजों ! भारत छोडो, कही मरुवा उंकर मरोड़े ।
चरखा-तकली चला-चला के, खद्दर पहिने ओढ़े,
धन्य बबा गाँधी, सुराज ला लेये तब्भे छोड़े ।।

धोये तही विषमता के प्याला अउ अमृत घोरे,
दीन-दलित मन के कल्याण भइस किरपा-मा तोरे ।
चरखा-तकली चला-चला के, खद्दर पहिने ओढ़े,
धन्य बबा गाँधी, सुराज ला लेये तब्भे छोड़े ।।

रहिस जरुरत तोर आज पर चिटको नहीं अगोरे,
अमर लोक जाके दुनियाँ-ला दुख सागर मा बोरे ।
चरखा-तकली चला-चला के, खद्दर पहिने ओढ़े,
धन्य बबा गाँधी, सुराज ला लेये तब्भे छोड़े ।।

बापू जी के गुण ला गाबो, हम मन भइया हो रे,
वोला नमन सदा करबो हम दूनों हाथ ला जोरे ।
चरखा-तकली चला-चला के, खद्दर पहिने ओढ़े,
धन्य बबा गाँधी, सुराज ला लेये तब्भे छोड़े ।।.