भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिन आँखिन रूप-चिह्नारि / घनानंद

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:26, 29 अप्रैल 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिन आँखिन रूप-चिन्हार भई,
तिनको नित ही दहि जागनिहै.
हित-पीरसों पूरित जो हियरा,
फिरि ताहि कहाँ कहु लागनिहै.
‘घनआनन्द’ प्यारे सुजान सुनौ,
जियराहि सदा दुख दागनि है.
सुख में मुख चंद बिना निरखे,
नखते सिख लौं बिख पागनि है.