भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ईश्वर / विवेक निराला

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:28, 1 जुलाई 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(अपने गुरू सत्यप्रकाश मिश्र के लिए)

लोग उसे ईश्वर कहते थे ।

वह सर्वशक्तिमान हो सकता था
झूठा और मक्कार
मूक को वाचाल करने वाला
पुराण-प्रसिद्ध, प्राचीन।

वह अगम, अगोचर और अचूक
एक निश्छ्ल और निर्मल हँसी को
ख़तरनाक चुप्पी में बद्ल सकता है।

मैं घॄणा करता हूँ
जो फटकार कर सच बोलने
वाली आवाज़ घोंट देता है।

ऎसी वाहियात सत्ता को
अभी मैं लत्ता करता हूँ।