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तेरा मारिया ऐसे रोऊँ / हरियाणवी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तेरा मारिया ऎसा रोऊँ

जिसा झरता मोर बणी का

तेरे पाइयाँ माँ पायल बाजै

जिसा बाजे बीज सणीं का

थोड़ा-सा नीर पिला दै

प्यासा मरता दूर घणीं का


भावार्थ

--'तेरे सौन्दर्य से घायल होकर मैं वन के मोर की तरह रोता हूँ । तेरे पैरों की पाजेब ऎसे बजती है, जैसे सन के बीज झंकार करते हैं । अरी ओ थोड़ा-सा जल पिला दे मुझे, दूर का पथिक हूँ मैं प्यास से व्याकुल ।'