भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धरती रो करज / कृष्णा सिन्हा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:27, 12 फ़रवरी 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ईं धरती रो करज थारै पर ई है बेटी
थूं भी ईं को ई अन्न-जळ खायो है
थारी ई या मां है बेटी
ईं धरती रो करज थारै पर भी है बेटी।
थूं नहीं है मीराबाई, नहीं थूं पन्नाधाय,
म्हूं जाणू हूं-
पण धरती रै वास्तै,
थनैं ई कीं तो करणो ई है बेटी
ईं धरती रो करज थारै पर ई है बेटी
थूं भी ईं को कर सकै उपाय
बचावण पाणी री हर बूंद रो।
ऊगा सकै थूं पेड़ घणा
मेहनत अर उम्मीद सूं।
 
टाबरां में आछा संस्कारां रा अंकुर
थानैं ई तो बोणो है
वांनैं आछी देय’र शिक्षा
ग्यान रो दीवो जोणो है।
 
थनैं करणो है हर मुस्किल रो सामनो
पण नीं मानणी है थनैं हार बेटी
ईं धरती रो करज थारै पर ई है बेटी
थूं ई ईं को...।