Last modified on 6 जुलाई 2014, at 22:19

बस प्यार तुम्हारा / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:19, 6 जुलाई 2014 का अवतरण

घूमूँगा बस प्यार तुम्हारा
तन मन पर पहने
पड़े रहेंगे बंद कहीं पर
शादी के गहने

चिल्लाते हैं गाजे बाजे
चीख रहे हैं बम
जेनरेटर करता है बक बक
नाच रही है रम

गली मुहल्ले मजबूरी में
लगे शोर सहने

सब को खुश रखने की खातिर
नींद चैन त्यागे
देहरी, आँगन, छत, कमरे सब
लगातार जागे

कौन रुकेगा, दो दिन इनसे
सुख दुख की कहने

शालिग्राम जी सर पर बैठे
पैरों पड़ी महावर
दोनों ही उत्सव की शोभा
फिर क्यूँ इतना अंतर

मैं खुश हूँ, यूँ ही आँखों से
दर्द लगा बहने