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बस प्यार तुम्हारा / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
Kavita Kosh से
घूमूँगा
बस प्यार तुम्हारा
तन-मन पर पहने
पड़े रहेंगे बंद कहीं पर
शादी के गहने
चिल्लाते हैं गाजे-बाजे
चीख रहे हैं बम
जेनरेटर करता है बक-बक
नाच रही है रम
गली-मुहल्ले
मजबूरी में
लगे शोर सहने
सब को ख़ुश रखने की ख़ातिर
नींद चैन त्यागे
देहरी, आँगन, छत, कमरे सब
लगातार जागे
कौन रुकेगा
दो दिन इनसे
सुख-दुख की कहने
शालिग्राम जी सर पर बैठे
पैरों पड़ी महावर
दोनों ही उत्सव की शोभा
फिर क्यूँ इतना अंतर
मैं ख़ुश हूँ
यूँ ही आँखों से
दर्द लगा बहने