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सध्यः अहाँ / कालीकान्त झा ‘बूच’

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सध्यः अहाँ, मुदा छी सपना एहि जीवन मे
सहजो सुख भऽ गेल कल्पना एहि जीवन मे

विहुँसल ठोर विवश भऽ विजुकल
मादक नैन नोरक नपना एहि जीवन मे

अछि के कतऽ श्रृंगार सजाओत
आश लाश पर कफनक झपना एहि जीवन मे

दुनियाँ हमर एकातक गहवर
भेल जिअत मुँरूतक स्थपना एहि जीवन मे

दीप वारि अहाँ द्वारि जड़यलहुँ
घऽर हम लोकक अगितपना एहि जीवन मे