Last modified on 7 नवम्बर 2014, at 12:48

बगिया के फूल / दीनदयाल शर्मा

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:48, 7 नवम्बर 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आफत लगती हमें पढ़ाई,
लगता जैसे शामत आई।

पाठ्य पुस्तकें लगती बोर,
हम सब बच्चे करते शोर।

नई-नई कोई बात बताए,
हम सबका भी मन लग जाए।

कंप्यूटर में दुनिया सारी,
हम भी जानें दुनियादारी।

कभी खेल कभी ड्राइंग बनाएं,
ड्रामा करें कभी डान्स दिखाएं।

सारे मिलकर दौड़े आएं,
पढऩे से फिर नां कतराएं।

ऐसा कोई बने स्कूल,
हम बच्चे बगिया के फूल।।