Last modified on 1 अप्रैल 2015, at 16:33

जिनको बजत हुकुम को बाजा / ईसुरी

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:33, 1 अप्रैल 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जिनको बजत हुकुम को बाजा।
कान रीत में आजा।
हम खाँ जान देब द्द बैंचन।
भग रोकन नई साजा।
करो फिराद जावगे पकरे।
रोकें सें गम खाजा।
जानत नई बृजभान कुँअर खाँ,
जिसकी सकल समाजा,
चौरासी बृज कोस ईसुरी,
हियाँ राधका राजा।