Last modified on 3 सितम्बर 2015, at 11:25

रोटी का संविधान / देवेन्द्र आर्य

दिल्ली झण्डा और देशगान
साधू जंगल गइया महान ।

सबके सब ठिठक गए आके
लोहे के फाटक पर पाके
टिन का एक टुकड़ा लटक रहा
'कुत्ते से रहिए सावधान ।'

चेहरे पर उग आई घासें
सड़ती उम्मीदों की लाशें
वे जब भी सोचा करते हैं
उड़ते रहते हैं वायुयान ।

बातों को देते पटकनिया
चश्मा स्याही टोपी बनिया
उन लोगों नें फिर बदल दिया
अपना पहले वाला बयान ।

केसरिया झण्डा शुद्ध लाभ
जैसे समझौता युद्ध लाभ
रस्ता चलते कुछ लोग हमें
देते रहते हैं दिशा ग्यान ।

एक गीत और एक बंजारा
अाओ खुरचें यह अंधियारा
नाखूनों की भाषा में लिख डालें
रोटी का संविधान ।

रचनाकाल : जून 1979