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मैने टाँग लिया है / रति सक्सेना

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मैने टाँग लिया है
सफर अपने दायें कंधे पर
चल पड़ती हूँ आगे
या फिर छोड़ती जाती हूँ
उन सभी को
जो मेरे साथ चलने का
दम नहीं रखते

फिर भी साथ चले आ रहे हैं
वे सब
जो मुझ से
खास परिचय नहीं रखते
नदी के किनारे फुदकते
परदेशी परिंदे
खिड़की का परदा उठा कर
झाँकता हुआ घर
बचपन के आगे दौड़ता पहिया
उन सब के पीछे चली आ रही हैं
वे सब यादे, एक काले बादल की शक्ल में
जो कल पहाड़ बन कर खड़ी हो जाएँगी
मेरी खिड़की के सामने