भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
याद / रति सक्सेना
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:01, 29 अगस्त 2013 का अवतरण
1
खिड़की बन्द कर दी
दरवाजा पलट दिया
रोशनदानों के कानों में
कपड़ा ठूँस दिया
कोई सूराख ना रहा जिसे
बन्द न किया गया
फिर भी न जाने कब और कैसे
याद से घर भर गया
2
पहली याद आई
तिनका धर चली गई
दूसरी ने तिनकों पर
सजा दिए तिनके
घोंसला चहचहा उठा
3
मानसून का रुख़ बदला
हवा सूख कर चिमट गई
थम गईं साँसे
बादल टकरा उठे फेफड़ों से
फरफराती कुछ बूंदें
नाचती पत्तियों पे
बरसात क्या आई
यादें बरस गईं