भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चांदनी की उधारी / रति सक्सेना
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:11, 29 अगस्त 2013 का अवतरण
उन सभी कदमो को
गिन कर देखूँ यदि
तुम्हारे साथ चले थे मैंने
पाँव फिर से
चलना भूल जाएँ
सड़क भूल जाए रास्ता
उन लम्हों को जोड़ कर देखूँ
बिताए थे तुम्हारे साथ
समय की धड़कन रुक जाए
उस आँच को
क्या पहचानोगे तुम
जिस में पकता रहा मेरा
अन्तस रस
तुम्हारे हर कदम
हर साथ
हर बून्द प्यार
चांदनी की उधारी था