Last modified on 8 मार्च 2017, at 22:18

उम्मीद की फाँक / कुमार कृष्ण

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:18, 8 मार्च 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बह रही थी नदी की बाढ़ में-
एक हिम्मत
डूब रहा था उसमें-
एक हौसला
डूब रही थीं आस्थाएँ
डूब रही थी विश्वास की
एक पुरानी इमारत
देख रहे थे पूरा मंज़र
अनगिनत लोग
किनारे पर खड़े होकर
मेरे दायीं ओर खड़े आदमी ने कहा-
'बहुत बूढ़ा है डूब भी जाए तो क्या फ़र्क़ पड़ेगा
थोड़ा कम ही होगा धरती पर बोझ'
जान पर खेलते हुए
बायीं ओर खड़े एक नौजवान लड़के ने
लगा दी नदी में छलाँग
वह ले आया अपने कन्धों पर उठाकर
एक बूढ़ा आदमी
डूब रहा था जो-
मनुष्यों की भीड़ के सामने।