भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नर में नाग / चन्द्रमोहन रंजीत सिंह
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:15, 24 मई 2017 का अवतरण
सभ्य नहीं बन पाए नाग तुम सभ्य नहीं बन पाए
उसको भी डस लिया है जिसने तुझको दूध पिलाए।नाग।
अपने हीन कर्म पर मन में कभी नहीं पछताए।
जिसने रक्षा करी तुम्हारी, तेहि शिर वज्र गिराए।नाग।
नाता जोड़ के नाता तोड़ा अपनी चाल दिखाए
विषधर साँपों से मिल करके कौम का खून कराए।नाग।
जो कुछ कहा किया ना उसको, लाज न मन में आए
इसी से पापी तेरे मुख में विधि दो जीभ बनाए।नाग।
जो कुछ कहा किया ना उसको, लाज न मन में आए
इसी से पापी तेरे मुख में, विधि दो जीभ बनाए।नाग।
जिस घर में तू पला प्यार से, उसमें आग लगाए
शिर पर रखने वाले शिर विष ज्वाला बरसाए।नाग।