भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपमान / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
अपमान का इतना असर मत होने दो अपने ऊपर
सदा ही और सबके आगे कौन सम्मानित रहा है भू पर
मन से ज्यादा तुम्हें कोई और नहीं जानता उसी से पूछकर जानते रहो
उचित-अनुचित क्या-कुछ हो जाता है तुमसे
हाथ का काम छोड़कर बैठ मत जाओ ऐसे गुम-सुम से !