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कविता-3 / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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गर्मी की रातों में
जैसे रहता है पूर्णिमा का चांद
तुम मेरे हृदय की शांति में निवास करोगी
आश्चर्य में डूबे मुझ पर
तुम्हारी उदास आंखें
निगाह रखेंगी
तुम्हारे घूंघट की छाया
मेरे हृदय पर टिकी रहेगी
गर्मी की रातों में पूरे चांद की तरह खिलती
तुम्हारी सांसें , उन्हें सुगंधित बनातीं
मरे स्वप्नों का पीछा करेंगी।
अंग्रेजी से अनुवाद - कुमार मुकुल