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कितनी नावों में कितनी बार / अज्ञेय
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कितनी नावों में कितनी बार
रचनाकार | अज्ञेय |
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प्रकाशक | भारतीय ज्ञानपीठ |
वर्ष | 1983 (चौथा संस्करण) |
भाषा | हिन्दी |
विषय | |
विधा | |
पृष्ठ | 103 |
ISBN | |
विविध | 1962-66 की कविताएँ |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- उधार / अज्ञेय
- सन्ध्या-संकल्प / अज्ञेय
- प्रातः संकल्प / अज्ञेय
- कितनी नावों में कितनी बार (कविता) / अज्ञेय
- यह इतनी बढ़ी अनजानी दुनिया / अज्ञेय
- निरस्त्र / अज्ञेय
- जीवन / अज्ञेय
- समय क्षण-भर थमा / अज्ञेय
- ओ निःसंग ममेतर / अज्ञेय
- ओ एक ही कली की / अज्ञेय
- कि हम नहीं रहेंगे / अज्ञेय
- उलाहना / अज्ञेय
- पक्षधर / अज्ञेय
- गति मनुष्य की / अज्ञेय
- उत्तर-वासन्ती दिन / अज्ञेय
- पंचमुख गुड़हल / अज्ञेय
- गुल-लालः / अज्ञेय
- अन्धकार में जागने वाले / अज्ञेय
- गृहस्थ / अज्ञेय
- जैसे जब से तारा देखा / अज्ञेय
- सुनी हैं साँसें / अज्ञेय
- नाता-रिश्ता / अज्ञेय
- होने का सागर / अज्ञेय