भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जैसे जब से तारा देखा / अज्ञेय
Kavita Kosh से
					
										
					
					 
क्या दिया-लिया?  
जैसे  
जब तारा देखा  
सद्यःउदित  
—शुक्र, स्वाति, लुब्धक—  
कभी क्षण-भर  
यह बिसर गया  
मैं मिट्टी हूँ;  
जब से प्यार किया,  
जब भी उभरा यह बोध  
कि तुम प्रिय हो—  
सद्यःसाक्षात् हुआ—  
सहसा  
देने के अहंकार  
पाने की ईहा से  
होने के अपनेपन  
(एकाकीपन!) से  
उबर गया।  
जब-जब यों भूला,  
धुल कर मंज कर  
एकाकी से एक हुआ।  
जिया।
	
	