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चार शे’र / यगाना चंगेज़ी

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क्या ख़बर थी दिल-सा शाहं-शाह आख़िर एक दिन।
इश्क़ के हाथों गदाओं-का-गदा<ref>भिक्षुक</ref> हो जाएगा॥

किस दिले-बेक़रार को तूने यह वलवला दिया।
देना न देना एक है, ज़र्फ़ से<ref>आवश्यकता से अधिक</ref> जब सिवा दिया॥

हुस्न चमक गया तो क्या, बू-ए-वफ़ा तो उड़ गई।
इस नई रोशनी ने आह दिल का कँवल बुझा दिया॥

ज़िन्दा रक्खा है सिसकने के लिए।
वाह! अच्छे दोस्त से पाला पड़ा॥

शब्दार्थ
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