भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सोना और प्लास्टिक / देवेन्द्र आर्य

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:00, 18 जून 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अगर कभी पैदा किए जा सके सोने में
प्लास्टिक के गुण तो दाम इसके चढ़ेंगे?
आप कहेंगे सोना भागेगा
जी नहीं सोना सोएगा प्लास्टिक जागेगा
सोया सो खोया जागा सो पाया
ज़माना प्लास्टिक का आया।

सोना एक सामंतवादी धातु है
और प्लास्टिक प्रयोगशाला में उत्पन्न समाजवाद
प्लास्टिक के समाजवाद ने बिवाई फटे पाँवों में चप्पलें डाल दीं
और सिर पर छत।

सोना बुर्जुआ है प्लास्टिक प्रोलितेरियत
यानी दलित-दमित
सोना ब्राह्मण है प्लास्टिक चमार।
शद्ध माना जाता है सोना पुरुषों की तरह
स्त्री प्लास्टिक है कभी शुद्ध नहीं होती
माह के पचीस दिन भी नहीं।
 
पुरुष है सोना इसलिए स्त्रियाँ उसे मंगल की तरह
सीने पर धारण करती हैं
स्त्री है प्लास्टिक इसलिए पुरुष उसे पाँव में धारण करते हैं
पनही की तरह
कोमल है सोना बजझित है प्लास्टिक।

खानदानी होता है सोना खान से निकलता है
खानदानियों की तरह मिलावट सोने का गुण-धर्म है।
अपनी मिलावटी ऐंठ को गहना समझता है सोना
कमर से ऊपर शुद्ध शरीर पर ही विराजमान होता है
कमर के नीचे बखरा स्त्रियों का
जहाँ ऊपर वाले मतलब भर के लिए उतरते हैं।

सोना धारण करने के लिए नाक कान छेदाती हैं स्त्रियाँ
नाक-कान नहीं दरअसल छेदी जाती है आत्मा
सोनामढ़ी छेदही आवाज!
सोना मृत्यलोक का स्वामी है प्लास्टिक देव लोकी
सूर्य का ताप प्लास्टिक की प्रजातियां ही सह सकती हैं
सोना तो लंका हो जाएगा।

आज तक किसी ने किसी को
सोने का पेसमेकर धारण करते देखा-सुना हो
तो बताए
ब्रूनो के सुल्तान हो कि स्टील किंग मित्तल
कि मीडिया मर्डोक कि स्वयं ससुर बुश
दिल की धड़कन वापस लानी होगी
तो अछूत प्लास्टिक को दिल में जगह देनी होगी
नहीं तो राम नाम असत्य हो जाएगा
दाऊ किंगडम विल बिकम दो कौड़ी।