भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्वप्न-कथन / शलभ श्रीराम सिंह
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:36, 24 दिसम्बर 2009 का अवतरण ("स्वप्न-कथन / शलभ श्रीराम सिंह" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
हिरन पर आई हुई है
बाघिन की तबियत
कबूतर मादा बाज़ पर फ़िदा है।
मौत और मुहब्बत के इस खेल में
शामिल नहीं है शब्द
कविता शामिल नहीं है
मनुष्य शामिल होने की तैयारी कर रहा है
शायद।
खेल को और ...और
दिलचस्प बना देने के लिए
मनुष्य का शामिल होना ज़रूरी है.
उसमें।
रचनाकाल : 1991, विदिशा