भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अजनबी शहर के / राही मासूम रज़ा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:07, 1 सितम्बर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अजनबी शहर के अजनबी रास्ते, मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे
मैं बहुत देर तक यूं ही चलता रहा, तुम बहुत देर तक याद आते रहे

ज़हर मिलता रहा ज़हर पीते रहे, रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे
ज़िंदगी भी हमें आज़माती रही, और हम भी उसे आज़माते रहे

ज़ख़्म जब भी कोई ज़ेह्न-ओ-दिल पे लगा, ज़िंदगी की तरफ़ एक दरीचा खुला
हम भी गोया किसी साज़ के तार हैं, चोट खाते रहे गुनगुनाते रहे

कल कुछ ऐसा हुआ मैं बहुत थक गया, इसलिये सुन के भी अनसुनी कर गया
इतनी यादों के भटके हुए कारवाँ, दिल के ज़ख़्मों के दर खटखटाते रहे

सख़्त हालात के तेज़ तूफानों में , घिर गया था हमारा जुनूने-वफ़ा
हम चिराग़े-तमन्ना जलाते रहे, वो चिराग़े-तमन्ना बुझाते रहे