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गजब की दिवाली / दीनदयाल शर्मा

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धूम धड़ाका
बजे पटाखा
भड़ाम से बोला
बम फटा था ।
  सर्र-सर्र से
  चक्करी चलती
  फर्र-फर्र
  फुलझड़ी फर्राटा ।
सूँ-सूँ करके
साँप जो निकला
ऐसे लगा, मानो
जादू चला था ।
  फटाक-फटाक
  चली जो गोली
  ऐसा भी
  पिस्तौल बना था ।
ऐसी ग़ज़ब की
हुई दिवाली
किलकारी का
शोर मचा था ।
  हुर्रे-हुर्रे, का
  शोर मचाकर
  बच्चों का टोला
  झूम रहा था ।
जगमग हो गई
दुनिया सारी
ख़ुशियों का पहिया
घूम रहा था ।