भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक लड़का / इब्ने इंशा

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:00, 9 नवम्बर 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक छोटा-सा लड़का था मैं जिन दिनों
एक मेले में पंहुचा हुमकता हुआ
जी मचलता था एक-एक शै पर मगर
जेब खाली थी कुछ मोल ले न सका
लौट आया लिए हसरतें सैकड़ों
एक छोटा-सा लड़का था मै जिन दिनों

खै़र महरूमियों के वो दिन तो गए
आज मेला लगा है इसी शान से
आज चाहूं तो इक-इक दुकां मोल लूं
आज चाहूं तो सारा जहां मोल लूं
नारसाई का जी में धड़का कहां ?
पर वो छोट-सा अल्हड़-सा लड़का कहां ?

नारसाई=असमर्थता