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स्मृति / संतोष मायामोहन
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सोनलिया रेत
मांडती है हवा
लहरें
नीर की ।
छोटी टेकड़ियां
धारै मछली रूप
मरुधर की स्मृति में है
सागर ।
अनुवाद : नीरज दइया