भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्मृति / संतोष मायामोहन
Kavita Kosh से
सोनलिया रेत
मांडती है हवा
लहरें
नीर की ।
छोटी टेकड़ियाँ
धारै मछली रूप
मरुधर की स्मृति में है
सागर ।
अनुवाद : नीरज दइया