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हेत रा रंग / मदन गोपाल लढ़ा
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कूड़ कोनी कथीजी
कै हेत रा
हजार रंग हूवै।
उण बगत रै बायरै में
म्हैं सूंघतो
प्रीत री सौरम
रात्यूं रास करतो
सपनां रे आगणै
हियै रचतो
एक इन्दरधनख।
बगत परवाण
हणै ई
हर रा नूंवां निरवाळा रंग
म्हारै सामीं ऊभा है
चितराम अवस बदळग्या।
स्यात
इण बेरंग
हुंवती दुनियां नै
रंगीन देखण सारू
जरूरी हुवै
हेत रंगी आंख्या।