भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बदळाव / शिवराज भारतीय
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:30, 18 अक्टूबर 2013 का अवतरण
बादळिया
कदैई हरखै
हरखावै
कदैई बणन सारू
तरसै
तरसावै
एक सो कद बरस्यो
वां सूं पाणी।
रेत
कदैई हवा रै साथै
रमतियां रमै
तो कदैई
ठौड़ पड़ी
भाखर ज्यूं जमै
हर गत सूं
अणजाणी।
जिंदगी
कदैई मुळकै
मुळकावै
अर दूजै ई छिण
टप-टप
आंसूड़ा ढळकावै
एक सी कद रही
कीं री कहाणी।