Last modified on 25 जुलाई 2009, at 12:56

रोबोट / किरण अग्रवाल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:56, 25 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=किरण अग्रवाल |संग्रह=गोल-गोल घूमती एक नाव / किरण ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

और एक दिन नींद खुलेगी हमारी
और हम पाऐंगे
कि आसमान नहीं है हमारे सिर के ऊपर
कि प्रयोगशालाओं के भीतर से निकलता है तन्दूरी सूरज
कि पक्षी अब उड़ते नहीं महज फड़फड़ाते हैं
और पेड़ पेड़ नहीं ठूँठ नाम से जाने जाते हैं
कि कोख कोख नहीं जलता हुआ रेगिस्तान है
और हृदय सम्वेदन शून्य, बर्फ़ उगलता एक शमशान
और एक दिन डिक्शनरी खोलेंगे हम
और देखेंगे
कि ’आज़ादी’ शब्द हमारे शब्दकोश में नहीं है
कि माता-पिता, प्रेम, दया जैसे उद्‌गार
औबसलीट हो गए हैं अब
और तब बदहवास से
डिस्क में बंद अतीत को स्क्रीन पर टटोलते
हम जानेंगे
कि हम इन्सान नहीं रोबोट हैं